रविवार, 30 अगस्त 2020

यथा दृष्टि तथा सृष्टि

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                         यथा दृष्टि तथा सृष्टि 

हम अक्सर सुनते हैं कि यथा दृष्टि तथा सृष्टि - अर्थात हम जैसे संसार को देखते है यह संसार हमारे लिए वैसा ही है।  

यहाँ मुझे एक चोपाई रामायण की याद आ गई -

जाकी रही भावना जैसी ,प्रभु मूरत देखि तिन तैसी।  

 जब राम- जनक की सभा में पहुंचे तो कोई उन्हें अपने बेटे के रूप में देख रहा है , कोई योद्धा के रूप में , कोई शत्रु के रूप में , कोई सगे संबंधी के रूप में।  

मतलब एक ही है - वही एक मात्र ईश्वर, एक मात्र चेतना , एक मात्र ऊर्जा सबके अंदर है और सब आपस में अपने अंदर की भावनाओं के  हिसाब से दूसरों को देख रहे होते हैं।  


यह बात ज्यादातर हम महसूस करेंगे कि हम जैसा दूसरों के बारे में सोच रहे होते हैं दूसरा भी हमारे बारे में वैसा ही सोच रहा होता है। 




कई बार ऐसा होता है कि कोई व्यक्ति हमें अच्छा नहीं लगता।  नहीं  लगने का कारण उसकी कुछ आदतें हैं। न चाहते हुए भी हमको उसे झेलना पड़ता है। 

 ऐसे में ये गुस्सा दोनों तरफ से बन रहा होता है।  उसकी हमारे बारे में सोच  है - कि ये ऐसा ही है - और हमारी भी राय बिलकुल वैसी ही होती है।  



सभी के अंदर एक ही ईश्वर है हम सामने कैसे भी हों लेकिन अंदर से हम अलग- अलग लोगों के लिए , अलग -अलग भाव रखते हैं।,और उसके अंदर बैठा हुआ ईश्वर भी हमें उसी भावना से देख रहा होता है।  



दूसरा कोई है ही नहीं।  


जैसे एक व्यक्ति किसी के लिए बहुत बुरा है और दूसरे के लिए अच्छा।  यानि कोई भी पूरी तरह से न अच्छा है न बुरा , हो भी नहीं सकता।  


जैसा कि  हमारे शास्त्रों में और गीता में वर्णित है -  

हम सब सत , रज , तम तीन गुणों से ही मिलकर बने हैं।  प्रत्येक व्यक्ति चाहे वह किसी भी स्थिति का हो , उसमें ये तीनों गुण होते ही हैं।  


अभी इसका वैज्ञानिक पक्ष भी जान लेते हैं - जैसा कि हम जानते हैं की हम सब परमाणु से बने हैं और वह तीन प्रकार के अणुओं से बना है - 

न्यूट्रॉन , प्रोटोन और इलेक्ट्रान।  यह क्रमशः सत , रज और तम के गुणों का ही प्रारूप हैं।  इसीलिए हमारे शास्त्रों को और ऋषियों की बातों को आज के वैज्ञानिक अपनी खोज का आधार बनाते हैं क्यों कि वो सब जो भी बात कहते थे उनका पूर्ण विश्लेषण और वैज्ञानिक कारणों को ध्यान  में रख कर ही कहते थे।   

अभी हम उस पायदान तक नहीं पहुंचे इसका मतलब यह नहीं कि वह बात गलत है।  


 यहां मैंने आपको आध्यात्मिक और वैज्ञानिक कारण दिए हैं और आप अपने  माइंड सेट के हिसाब से इसको समझ और मान सकते हैं।  

अब हम स्वभाविक रूप से इसको कैसे अप्लाई करें यह भी देखते हैं -


अब ऐसे में अगर हम एक लिस्ट बनायें कि क्या वाकई में सामने वाला गलत है या ये हमारे मन का बहम है, अक्सर हमें ये स्वीकार करने में बड़ी दिक्कत आती है कि ये हमारा बहम हो सकता है।  

अब इसको कैसे जांचे - 

१ क्या वह ये हमारे साथ जान बूझकर कर रहा है। 

२ अगर हाँ तो उसका कारण क्या है।  

३ कई बार स्कूल या कार्य क्षेत्र में लोग ऐसा करते हैं जिससे इरिटेशन होती है।  

४ यहां अगर आपके बात करने   से  एक बार में समस्या खतम होती है तो पूरे मन से संवाद के रूप में  बात कर लें।  

और अगर पॉसिबल नहीं है तो मानसिक रूप से दूरी बनाने का प्रयास करें। 

५ आपको अवॉयड नहीं  करना है वरना यह उन्हें और चिढ़ाएगा और उससे आपकी शांति और अधिक ख़त्म होगी इसलिए मेरे हिसाब से आप ऊपर दिए गए - जिस भी बिंदु ( वैज्ञानिक या आध्यत्मिक )को स्वीकार कर पाए उससे अपने को समझा कर शांति दिला सकते हैं।  

६ अपनी स्किल को बढ़ाने पर अपनी शक्ति का उपयोग करें।  

७ जैसे बचपन में हम किसी से लड़ते थे लेकिन दूसरे ही क्षण खेलने लगते थे।  ऐसे ही हर क्षण अलग है यह मान कर आगे बढ़ें। 

८ आपका आगे भड़ना और कैसे भी विरोध , बुराई या उपेक्षा न पाने पर सामने वाले का स्वयं ही ह्रदय परिवर्तन होने लगेगा। 

९ यह ध्यान रखें कि वह सबके साथ खराब नहीं है , इसका मतलब वह बुरा नहीं है। 

१० सबसे अधिक एक चोपाई मुझे प्रेरित करती है आपको भी कहना चाहूंगी - 

   

  सिय राम मय सब जग जानी,

करहु प्रणाम जोरी जुग पानी ।।


आशय - 

पूरे संसार में श्री राम का निवास है, सबमें भगवान हैं और हमें सबको हाथ जोड़कर प्रणाम कर लेना चाहिए।


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रविवार, 16 अगस्त 2020

Solve your problem

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 सब समस्यों का एक  हल 


कई बार जब हमारा दोस्त परेशानी में होता है और वह जब हमसे सलाह मांगता है तो हम उसको ज्यादा सही सलाह दे पाते हैं लेकिन जब वैसा ही हमारे  साथ होता है तो हमारे ऊपर वह समस्या इतनी हावी रहती है कि  हम खुदके लिए सही निर्णय नहीं ले पाते। यहां अब यह सवाल उठता है कि है ऐसा हम जान बूझ के करते हैं या उसके कुछ कारण हैं -

आईये मिल कर खोजते हैं-

पहला हमारा डर- जैसे मेरा कोई व्यापार है और उसमें कई समस्याएं हैं- अब पहला डर ये है कि वो खत्म हो सकता है लेकिन अगर हम डरेंगे तो वो वेसे भी खत्म हो जायेगा।




अब हम खोजने जाते हैं किसी ऐसे को जो हमारी समस्या का समाधान कर दे- सलाह में कुछ गलत नहीं है लेकिन हम प्रैक्टिकल रूप से अगर अपने आप को उस समस्या से अलग नहीं करेंगे- तब तक समस्या का वास्तविकता में हल नहीं होगा क्योंकि यहाँ हमें यह देखना पड़ेगा कि अगर यह समस्या हल हो गई तो क्या हमारी सारी समस्याएं हल हो जायेंगीं इसके लिए आप देखते जायें कि जो सक्सेसफुल हैं क्या उनकी सभी समस्याएँ हल हो गई हैं। जब आप  अपने आप को इस प्रकार देखेंगे तो यह देख पायेंगे कि समस्या का हल हो या न हो, उससे आपकी जींदगी पर कोई विशेष रूप से फर्क नहीं पड़ेगा। अब क्योंकि आपकी समस्या से आपका डर खत्म हो जायेगा तब आप उसे इस तरह और उस तरह देख पायेंगे और बायस होकर गलत निर्णय करने से बच जायेगें क्योंकि अन्ततः  आपके लिए क्या सही है वह आप ज्यादा सही से जान सकते हैं। 

यह तो रही किसी एक समस्या पर निर्णय लेने की बात, लेकिन क्या कोई ऐसा तरीक़ा है कि हमारी सारी समस्याएं एक साथ हल हो जायें- 



हाँ  -: यहाँ आप यह समझें कि जब तक जीवन रहेगा समस्याएं भी रहेंगी। वास्तविक समस्या कोई समस्या के आने में नहीं वरन् समस्या नहीं आये इस विचार में है जब हम वास्तविकता में यह बात गहराई से समझ जायेंगे तो एक तो कोई भी समस्या आएगी तो पेनिक नहीं होँगे और दुसरा उसके समाधान को ज्यादा अच्छे से खोज पायेंगे। जेसे आज जो अपना करियर को एक समस्या के रूप में देखते हैं और बेहद परेशान रहते हैं जब वो उन लोगों को देखेंगे जिनका करियर बन चुका है- तो वो लोग ये कहेंगे कि वो दिन अच्छे थे- भाग दौड की जिन्दगी थी लेकिन फिर भी आज से बढिया समय था यानी हमेशा हमें दुसरी साईड में ही ज्यादा खुशियाँ दिखाई देती हैं , इस तरह की नहीं तो उस तरह की यानि शेप चेंज होती रहती है पर उलझन , परेशानी आती रहती है जैसे आप लम्बी ड्राइव पर निकलें और उसमें न ट्रैफिक हो और न गड्ढे तो आपको नींद आने लगेगी यानी बाहर से नहीं तो अंदर से कुछ न कुछ चलता रहता है इसलिए ये देखो कि बहुत से लोगों के लिए-जो जीवन हम जी रहे हैं, वह जीवन उनका ख्वाब है- जिसके बच्चे नहीं वो बच्चों के लिए परेशान और जिसके बच्चे हैं वो उनसे परेशान। इसलिए खुशी या समस्या का हल बाहर है ही नहीं। कैसी भी परिस्तिथि में  हम ऊपर वाले का धन्यवाद देते रहें , संतुष्ट रहें । यकीन मानिये कुछ भी हो जाए आप हमेशा बहुत सारे लोगों से ऊपर ही रहेंगे इसलिए खुश रहेँ। contentment is only the way.

 · बिनु संतोष न काम नसाहीं। काम अछत सुख सपनेहुँ नाहीं।

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books are suggested-

1- Contentment: A Godly Woman's Adornment

2- Becoming A Woman Whose God Is Enough

मंगलवार, 11 अगस्त 2020

गोविंदा और आनन्दा

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गोविंदा और आनन्दा 🙏

कई लोग कहते हैं कि कृष्ण तो अलौकिक थे पर वे जितने अलौकिक थे उतने ही लौकिक भी थे - वो ऐसे बेटे थे कि आज भी हर माँ अपने बेटे में कान्हा को देखती है , मित्र थे तो ऐसे कि हर कोई इनकी मित्रता का उदाहरण देता है , प्रेमी थे तो ऐसे कि हर कोई अपने दिल में कान्हा को बसाता है , पति , राजा , रक्षक हर रूप में वो परम लौकिक थे और भक्तों के लिए तो आज भी वही प्राण आधार हैं।  


ब्रिज के कण - कण में आज भी वही दिखता है , हमारी झोली ( सामर्थ ) जितनी है उतना ही हम जान पाते हैं।  जिसका स्वरूप ही आनन्द से बना हो उसके गान को कोन गा सकता है -

सच्चिदानंद रूपाय विश्वोत्पत्यादिहेतवे! तापत्रय विनाशाय श्री कृष्णाय वयं नमः। 

सच्चिदानंद स्वरूप भगवान् श्री कृष्ण को हम नमस्कार करते हैं , जो इस जगत की उत्पत्ति , स्थिति और विनाश के हेतु तथा आध्यात्मिक , आधिदैविक और आधिभौतिक - तीनों प्रकार के तापों का नाश करनें वाले हैं!

कृष्ण अपने नाम के अनुरूप - कर्षयति इति कृष्णः - जो आकर्षित करे वह कृष्ण।  

भगवान श्रीकृष्ण का जीवन  १६ कलाओं से पूर्ण हैं । इस बात को कृष्ण की बाल लीलाओं से भी हम समझ सकते हैं । बाल्यकाल में सबसे पहला कार्य गायों को वन में ले जाने का है। वहाँ उनके साथ हर स्तर के गोपबाल जोते हैं । सब अपनी अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार दोपहर की भोजन लाते हैं ।बालकृष्ण  बड़े  सहज हैं । भोजन करते समय खेल खेल में सबके  भोजन  को मिलाकर स्वयं अपने हाथों से सबको खिलाकर सहज ही ऊंच-नीच का भेद मिटा समरसता को जगा देते हैं । मटकी फोड़, माखन चोर का खेल भी केवल नटखट लीला नहीं  है। वह भी एक बड़ी क्रांति  है। यह नन्दग्राम व गोकुल के परिश्रम से उत्पन्न दूघ-दही  को कंस के राक्षसों के पोषण के लिये जाने से रोकने का सहज तरीका है। सबसे पहला स्वदेशी आंदोलन।

पूतना, शकटासुर तथा बकासुर जैसे असूरों का नाश व नृत्य कर  कालिया मर्दन से कई दशकों से पीड़ित और शोषित लोगों के मध्य आत्मविश्वास आत्मबल को पैदा किया।

कहाँ तो वृन्दावन , कहाँ द्वारका , कहाँ कुरुक्षेत्र - उनका पूरा जीवन - पूर्ण कर्म की शिक्षा देता है साथ ही पूर्ण निर्लिप्तता इसीलिए उन्हें योगेश्वर कृष्ण कहा गया।  

कर्म , भक्ति और ज्ञान के जो रास्ते उन्होंने गीता में बताये वह भी मेरे विचार से व्यक्ति को निर्भार करने के ही रास्ते हैं।  हम इसे ऐसे समझ सकते हैं कि हम पैदल निकले , हमारे साथ हमारा सामान भी था जो कि हमने अपने सिर पर रखा हुआ है  - अब रास्ते में हमारा मित्र मिला और बोला आजाओ मेरी गाड़ी में बैठ जाओ, मैं तुम्हें जहां जाना है -छोड़ देता हूँ , अब हम उसकी गाड़ी में बैठ गए पर सामान को सिर पर ही रखे रखा , मित्र ने कहा - अब गाड़ी में हो इसे उतार दो , तो हम कहने लगे कि तुमने हमें बैठा लिया इतना बहुत है , अब सर का भार आपकी गाड़ी पर नहीं डालूँगा .... सुन कर हँसी आ रही होगी , पर सच बताइये हम सब क्या कर रहे हैं  .... 

बस यही आनन्द  है    .... निर्भार , निर्वेर - मस्त उसके भरोसे।  हाँ जब जरूरत होगी तो लड़ोगे भी , कर्म से मुक्ति नहीं है - कर्म भाव से मुक्ति है। 


इसी लिए जन्माष्टमी को सभी गाते हैं - नन्द घर आनन्द  भयो जय कन्हैया लाल की 🙏

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books are suggested-


1- Srimad Bhagavatam -HINDI


2- Meiro Shree Krishna Leela Poorshottam Bhagwan

चिंतन और चिंता

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चिंतन और चिंता 

चिंतन वह जो आपको कोस्चन मार्क को हटा दे, चिंता वह जो कोस्चन मार्क में डाल दे 

चिंतन वह जिससे कुछ रास्ता निकले यानि यूजफुल और चिंता जिसका कोई यूज नहीं।  

एक वह जो शांत करे एंजाइटी को ख़त्म करे , और एक जो गुस्सा , परेशानी को भड़ा दे।  

एक वह है जो आपके आंतरिक विचारों पर काम करे और एक है जो बाहरी सोच तक सीमित होने से आपके आंतरिक स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं लाता है। 


एक जो आपके दिमाग पर काम करता है और एक आपके दिमाग से काम करता है।  

एक वह जिसकी सफलता आपके लिए जीवन सरल बनाता है और एक जिसकी सफलता आपको हर प्रकार से उलझाती है।    

अब दोनों को साथ - साथ  समझते हैं - 

* चिंता हमेशा भविष्य के बारे में होती है।  कुछ हमारी इच्छाएं हैं या मोह ( अटैचमेंट ) हैं जिसको न पाने या खोने का विचार हमें चिंता में ले जाता है।  

जैसे - मेरा व्यापार ख़त्म हो गया तो , हमारी गाड़ी का एक्सीडेंट हो गया तो, मेरा इंटरव्यू सही नहीं हुआ तो - 

* अब यहां कुछ ऐसी स्थिति होती हैं - जिसमें हम कुछ कर सकते हैं और कुछ जिसमें हम कुछ नहीं कर सकते।  

   १- जैसे हमारा कोई व्यापार है उसको सुधारने की कोशिश कर सकते हैं।  

   २- किसी की मर्त्यु  की चिंता - उस विषय में हम कुछ नहीं कर सकते।  

१ - जिसके लिए हम कुछ कर सकते हैं - उसके लिए हम सोच रहे हैं यह क्या  अब क्या होगा हम क्या करेंगे मतलब - चिंता 

 लेकिन जब हम परिस्थिति से अपने को थोड़ा भिन्न करते हैं और अपने से कहें की अच्छा ये विषय है इसके विषय में हम क्या कर सकते हैं पूरा - पूरा समझें कि इस स्थिति में हम क्या कर सकते हैं-  यह चिंतन अगर हम ढंग से करेंगे तो हम वह रास्ता निकाल पाएंगे जो हमारे लिए सही होगा।  

अगर चिंता करते रहे तो हम कभी सही निर्णय नहीं ले पाएंगे जबकि चिंतन आपको सही स्थिति तक ले जायेगा। 

२ - मृत्यु - यह वह विषय है जो सनातन सत्य है और जिस विषय में आप कुछ भी कर नहीं सकते।  

      इस विषय में केवल हमारा अंतर्ज्ञान या हमारा इस विषय पर समझ ही हमें शांति दिला सकता है। 

किसी व्यक्ति के जाने से  जो कुछ हमसे अलग हुआ उसको हम मिस तो करते हैं लेकिन समझ हमें अंदर तक गहराई से शान्ति में ले जाती है जो वास्तविकता में है , अभी भी है बस उसे  समझ तक ले जाना है, शाब्दिक ज्ञान इकठ्ठा करने बात नहीं बनेगी।  

         जैसे अगर हम अपने को समझाएं कि यह ईश्वर की मर्जी है शायद मेरे कुछ कर्म हैं या कुछ भी तथाकथित बातें जो हमने सुन रखी हैं - शायद वह सुनने में पॉजिटिव लगे जैसे लोग आँख बंद करके मैडिटेशन करते हैं और सोचतें हैं कि ये विचार को न आने दें , आत्मा शांत हो रही है , आप एनलाइटेंड हो रहे हैं सभी कुछ पेन किलर है जैसे जिस चीज को भी हम रोकते हैं वह ज्यादा दिमाग में घूमती है,  इसी तरह किसी दोस्त के साथ समय बिताते हैं , कोई पसंद का काम करना ये सभी टेम्परेरी सोल्यूशन हैं।  

 दुनिया में कुछ भी नहीं मरता है जैसे जैसे बर्फ से पानी - पानी से भाप - भाप से पानी - पानी से बर्फ।  


जैसे ये शरीर ७०% पानी से बना है , वनस्पति ये सब से तो हम बने हैं मरते हैं अगर बॉडी को छोड़ दें तो अनंत अन्य शरीर बन जाते हैं , जला दें तो मिटटी बन जाते हैं , और फिर उससे बनस्पति आदि सब कुछ फिर बन जाता है।  

जैसे हम पहाड़ पर जाएँ वहां अकेले हैं तो मन लगाने को एक पुतला बनाया और सोचें कि यही मेरा लाइफपार्टनर है और उससे इतना प्यार हो जाये कि इसके बिना मेरी जिंदगी ही नहीं ,अब आप बताएं क्या यह व्यक्ति  इस चिंता से बाहर आ सकता है।  यह झूट की दुनिया किसने बनाई।  अब मजेदार  बात यह  है हम खुद उसी बर्फ के बने हैं और अब बताएं दो बर्फ के पुतले आपस में एक दूसरे को खोने की चिंता में रो रहे हैं और उससे जो गर्म सांसें और आंसूं निकल रहे हैं उससे पिघले जा रहे हैं।  दुनिया में कुछ भी ऐसा नहीं कि वह खो सके अगर ये बात पकड़ में आ जाये तो बात बन जाएगी वर्ना तो यह भी कोरा ज्ञान ही होगा।  

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1-The Monk Who Sold His Ferrari 

रविवार, 9 अगस्त 2020

ध्यान का मूल मन्त्र

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ध्यान का मूल मन्त्र 🙏

ध्यान का मूल अर्थ है जागरूकता, अवेयरनेस, होश,   दृष्टा भाव और साक्ष‍ी भाव।

 ‘ ध्यान वह स्थिति है जो सहज घटता है।  

क्रिया के रूप में  -

तत्र प्रत्ययैकतानता ध्यानम।। 3-2 ।।-योगसूत्र  

अर्थात- जहां चित्त को लगाया जाए उसी में वृत्ति का एकाकार होना  ध्यान है। 


धारणा का अर्थ चित्त को एक जगह लाना या ठहराना है, लेकिन ध्यान का अर्थ है जहां भी चित्त ठहरा हुआ है उसमें वृत्ति का एकाकार होना ध्यान है। उसमें जाग्रत रहना ध्यान है।

 ध्यान का अर्थ एकाग्रता नहीं होता। एकाग्रता टॉर्च की स्पॉट लाइट की तरह होती है जो किसी एक जगह पर ही प्रकाश देती  है, लेकिन ध्यान उस बल्ब की तरह है जिसका प्रकाश चारों दिशाओं में फैलाता है।  योगियों का ध्यान सूरज के प्रकाश की तरह होता है जिससे ब्रह्मांड की हर चीज पकड़ में आ जाती है।

ध्यान मात्र होना है, बिना कुछ किए - कोई कार्य नहीं, कोई विचार नहीं, कोई भाव नहीं।  बस होन, और यह एक कोरा आनंद है। जब आप  कुछ नहीं करते हैं तो यह आनंद कहां से आता है? यह  अस्तित्व आनंद नाम की वस्तु से बना है। इसे किसी कारण की आवश्यकता नहीं है। यदि आप  अप्रसन्न हैं तो आपके  पास अप्रसन्नता का कारण है- अगर आप  प्रसन्न हैं तो आप  बस प्रसन्न हैं  - इसके पीछे कोई कारण नहीं है। हमारा मन कारण खोजने की कोशिश करता है क्योंकि यह अकारण पर विश्वास नहीं कर सकता, क्योंकि यह अकारण को नियंत्रित नहीं कर सकता - जो अकारण है उससे दिमाग  निष्क्रिय  हो जाता है।और मन को हर समय कुछ चाहिए जिसे वह जानता हो पर ईश्वर या ध्यान तो अज्ञात हैं  लेकिनज ब भी हम आनंदित होते हैं, तो  किसी भी कारण से आनंदित नहीं होते, जब भी हम  अप्रसन्न होते हैं ,  तो हमारे पास अप्रसन्नता का कोई कारण होता है - क्योंकि आनंद ही वह चीज है जिससे हम  बने हैं । 


 बहुत से लोग क्रियाओं को ध्यान कहते  हैं- जैसे सहज योग ध्यान, भावातीत ध्यान और सुदर्शन क्रिया । दूसरी ओर विधि को भी ध्यान समझने की भूल की जा रही है।


बहुत से संत, गुरु या महात्मा ध्यान की तरह-तरह की  विधियां बताते हैं, लेकिन वे यह नहीं बताते हैं कि क्रिया और ध्यान में फर्क है। क्रिया तो साधन है साध्य नहीं। क्रिया तो औजार है।  विधि और ध्यान में फर्क है।

अगर वे  प्रामाणिक बने रहते और लोगों से कहते कि इससे एक बेहतर आरामदायक जीवन, मानसिक स्वास्थ्य, शारीरिक स्वास्थ्य,  और शांतिपूर्ण जीवन मिलेगा, तो यह सही होता। 

 किसी मूर्ति का स्मरण करना भी ध्यान नहीं है। अक्सर यह कहा जाता है कि पांच मिनट के लिए ईश्वर का ध्यान करो- यह भी ध्यान नहीं, स्मरण है।आंख बंद करके बैठ जाना भी ध्यान नहीं है।  

ध्यान  कई चरणों के बाद हो पाता है।  इन कई चरणों में पहले चक्रों को ठीक किया जाता है।   ध्यान की सिद्धि के बाद व्यक्ति अनंत सत्ता का अनुभव कर पाता है।  इसे समाधि कहा जाता है।  

पतंजलि ने अष्टांग योग - यम, नियम आसान , प्राणायाम , प्रत्याहार, धारणा , ध्यान , समाधी के बारे में बताया है।    

इसके अलावा जेन योगा में भी इसकी विस्तृत चर्चा है।   यहां कुंडलनी कैसे विकसित होती है , किस प्रकार आप ध्यान की स्थिति तक पहुँच सकते हैं , प्राण -अपान - व्यान आदि सारी योग व् ध्यान से जुडी विधियों को बहुत सूक्ष्म रूप से समझाया गया है।  


मेडिटेशन या ध्यान से आपका मानसिक व् शारीरिक स्वास्थ अच्छा होता है , क्रोध व् चिंता कम होती है , जीवन में ऊर्जा व् सभी के प्रति जागरूकता भड जाती है।  

ऐसे आध्यात्मिक ध्यान, केंद्रित ध्यान, विपस्ना , मन्त्र ध्यान आदि कई प्रकार से ध्यान किया जाता है , अगर आप किसी विशेष ध्यान के बारे में जानना चाहते हैं तो कृपया मुझे कमेंट करके अवश्य बतायेँ।   

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books are suggested-

1- Dhyan Ke Kamal (Hindi)


2-Yoga Sutras of Patanjali


3- Zen-Yoga: A Creative Psychotheraphy to Self-Integration

शनिवार, 8 अगस्त 2020

कृष्ण और कर्म योग

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कृष्ण और कर्म योग 

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥


कर्म के बिना जीवन संभव नहीं और कर्म फल पर तुम्हारा अधिकार नहीं है। यह सिद्धांत वास्तविकता में इसलिए निरूपित किया गया ताकि हम कर्म के फल में मोहित न  हों - वरना सफलता मिलने पर हम उसमें आसक्त हो जाते हैं साथ ही सफलता का धमण्ड हो जाता है जबकि असफलता हमें कभी भी उस ब्लॉक बाहर न निकल पाने वाले डर और दुःख में ढकेल देता है।    यदि हम यह सोचें कि जीवन के अनुरूप कर्म हमारी तरफ से ईश्वर की साधना है , क्योँ कि आप ही विचार करें की उसके इस दिए गए शरीर का हम और किस प्रकार सकते हैं अतः - कर्म तो मुझे करना ही है-फल मिले या न मिले,जब यह होगा तो  फिर आप सभी चिन्ताओं से मुक्त होकर कर्म कर पाएंगे ।

''मैं करता हूँ'' यही सारा बंधन है एक बार जो कार्य आप करते हैं उससे पृथक होके दिख लें - वह फिर भी होगा , सही शब्दों में कहें तो आपकी वास्तविकता में कोई आवश्यकता नहीं।  

जैसे कोई घड़ा बड़ी मेहनत से बनाया जाय और वह पानी भरने में , ठंडा करने में अपनी तारीफ समझे कुछ ऐसा ही हम सब  करते हैं।  

अब रही बात कौन से कर्म करने योग्य हैं - तो वस्तुतः जब कर्ता भाव चला जाता है तो केवल वही कार्य बचते हैं जो करने योग्य हैं।  क्योँ कि जब आप कर्ता भाव से रहित होंगे तो कर्म भी निष्काम ही होंगे तो ऐसे में आप कुछ भी अकरणीय कर्म करेंगे ही नहीं।  

* यहां एक बात और विशेष है कि आपको जो कार्य दूसरों के हित में हो वह कार्य करने के लिए भी कहा गया है लेकिन विवेक पूर्वक।  जैसे चोर का हित इसमें है कि वह चोरी कर के ले जाये - तो आपसे ये नहीं कहा जा रहा कि आप चुप रहें या उसकी मदद करें।  आध्यात्मिकता का मतलब मूढ़ होना या निष्क्रिय हो जाना नहीं है अपितु ध्यान पूर्वक समाज की उन्नति के लिए तत्पर होने से है।  

कृष्ण का पूरा का पूरा जीवन बस इसी बात को दर्शाता है उनके जीवन में अहम् ब्रह्ममास्मि की उद्घोषणा ही नहीं थी वे सच में सबको समाहित करके चलने वाले युगपुरुष थे।  वे  सभी के साथ मित्र जैसा ही व्हवहार रखते थे 

उनका जीवन आनंददाई था और फिर भी अगर कोई चिंता करे तो कहते कि सब छोड़ कर मेरी शरण में आ।  

सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।

इसका यह मतलब कतई नहीं है कि आप कर्म छोड़ दें।  बल्कि जब आप किसी की शरण ही हो गए तो कोई कर्म न तो आपका है और न आप कर्म करेंगे या न करेंगे - यह निश्चय करने के अधिकारी हैं।   इसी बात को कबीर साहब ने कुछ इस प्रकार कहा है - 

जीवन मरण विचार कर , कूड़े काम निवार, जिन पंथों तुझे चालना सोइ पंथ सवांर .... 


तन को जोगी सब करें, मन को बिरला कोई।सब सिद्धि सहजे पाइए, जे मन जोगी होइ .... 

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1- Geeta rahsya 


2- karm yoga 

निश्चित सफलता के ५ मन्त्र - सबसे अलग

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निश्चित सफलता के ५ मन्त्र - सबसे अलग 

सफलता उस ताले की तरह है जो अपनी ही चाबी से खुलता है .... नइ चाबी बनाने के लिए आपको सारे मोड़ो को ध्यान से समझना होगा ....  आइये इसको गहराई से समझें -

यह सूत्र जितना नैतिक एवं मानवीय मूल्य रखता है, उतना ही वैज्ञानिक मूल्य भी रखता है। हमने इससे पहले के ब्लॉग में मोटिवेशन के बारे में पढ़ा , और उसमें  निराशा के कारण भी समझे  .... आज यह विषय भी उससे कुछ मिलता जुलता है इसलिए अगर आपने मेरा वो ब्लॉग नहीं पढ़ा है तो कृपया एक बार पढ़ लें  ...

👉 खुद को मोटीवेट कैसे रखें


अब सबसे पहले जब हमें काम शुरू करना है - उससे पहले ही कुछ बातें हैं जो हमें जाननी होंगी -

१- क्या हमारा कार्य असफल होता है तो हम उसको झेलने में समर्थ हैं।  

मेरी ये बात जो कि सबसे पहले रखी गई है मोटिवेशनल स्पीकर्स को पसंद नहीं आएगी पर हर व्यक्ति काम के एक ही पहलू को देखता है कि वो सफल ही होगा लेकिन क्या इससे वह सफल हो जाता है - तो काम शुरू करने  से पहले ही आप तय करलें कि आप अगर सफल नहीं होते तो आपने क्या क्या है जो खो सकते हैं     .... वह समय , वह मनी अमाउंट सब तय करें  .... अगर आप उसके लिए तैयार नहीं हैं तो कृपया चाहे जो हो -आपके सपने आपको कितना भी अधिक देने का वादा करें - उन पर न जाएँ   ..... इससे एक फायदा और होगा कि आप कितना दृढ हैं ये भी पता चल जायेगा।  

२- अब आपको अपना पूरा प्लान देखना होगा  .... उस पर डिटेल्ड एनालसिस करना होगा  .... जैसे अगर आप ऑनलाइन होम फ़ूड डिलीवरी करना चाहते हैं तो अगर आप उसे किसी छोटे कस्बे में करेंगे तो नहीं चलेगा  .... या आप प्रॉपर्टी डीलर हैं और जहां आलरेडी कई बिल्डिंग खाली ही पड़ी हैं वहां वह नहीं चलेगा , इसी प्रकार अगर आप होटल खोलना चाहते  हैं तो वह किस  में इलाके  होगा, उस  पर कितना इन्वेस्ट अपने  से कर सकते हैं कितना लोन चाहिए उसका ब्याज व् मूल चुकाने के लिए कितने समय में कितना प्रॉफिट बनाना पड़ेगा , आस पास के होटल किस प्रकार के हैं और वह लगभग कितना कमा  रहे हैं  कितना मैक्सिमम टाइम बनने में लगेगा। इस प्रकार आपको अपने विषय  पर पूरी प्रोजेक्ट फाइल बनानी चाहिए।     

३   सफलता केप्राप्त करने में और जल्द लक्ष्यों को हासिल करने के लिए किसी भी कार्य या कला में कुशलता  बड़ी मददगार होती है। इसलिए सीखने की जिज्ञासा बनाए रखें। 

४ परेशानियों से ज्यादा समाधान पर ध्यान दें और उनके समाधान में हम दूसरी परेशानी तो नहीं इकठ्ठी कर रहे ये भी ध्यान रखें।  जैसे अगर आपको पानी में तैरना सीखना है तो आप एकदम से नदी या समुद्र में नहीं कूदेंगे।  जो प्रोजेक्ट आपने बनाया है उस पर समय सीमा कुछ अधिक ले के चलें -और आने  वाली परेशानियों को अपनी शिक्षा में शामिल करें व् धैर्य पूर्वक उसका सामना करें।   


५ ज्यादातर हम एक भूल करते हैं कि सफलता  के लिए अनैतिक या शॉर्टकट अपनाने की कोशिश करते हैं।  शायद कुछ इस तरह के सफल लोगों को मेरी बात ठीक न लगे पर आप ऐसी सफलता का क्या करेंगे ये भी विचार करें।  इस सफलता में उन्होंने क्या खोया- ये वो आपसे शेयर नहीं करेंगे।  मेरा यकीन मानिये  आज आप जिस भी परिस्थति में होंगे लेकिन अनैतिकता आपको उससे बदतर स्थिति में ही ले के जाएगी इसलिए हमेशा सही रास्ता ही अपनाएँ।  

👉क्या ये ब्लॉग किसी भी प्रकार से आपके लिए सहायक है या आपके सुझाव इस विषय में क्या हैं  ... और आप आगे किन विषयों पर ब्लॉग पढ़ना चाहते हैं  ... कृपया अपने महत्वपूर्ण सुझाव दीजिये 🙏



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शुक्रवार, 7 अगस्त 2020

खुद को motivate कैसे रखें

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खुद को मोटीवेट कैसे रखें 💪

कहते हैं - मन को विरोध नहीं बोध दो।   

खुद को मोटिवेट करना कोई मुश्किल नहीं बस आपको सबसे पहले अपने मन की निराशा  को त्यागना पड़ेगा और धैर्य से काम लेना होगा। 



अक्सर हम लोग एक काम को शुरू तो करते है लेकिन कुछ दिन तक उस काम को सही तरीके से करने के बाद हम उस काम से अपना ध्यान खो देते हैं।  यह सिर्फ आपके साथ ही नहीं होता बल्कि सब के साथ होता है।   हम लोग जब किसी काम की शुरुआत करते हैं  तब हम बहुत ज्यादा मोटीवेट होते हैं  और पूरी लगन से उस काम को पूरा करते हैं  और फिर धीरे धीरे यह मोटिवेशन खत्म हो जाता है और हम अपने काम से भटक जाते हैं । 

इसके लिए पहले हम इसके कारणों को समझ लेते हैं -


 मेहनत के हिसाब से फल का न मिलना 

 लाभ का कम होना 

हमारी  इच्छा पूरी न होने पर 

 कोई काम हमारे द्वारा निर्धारित तरीके से न होने पर 

 जरूरत और चाहत में फर्क न कर पाने पर 

दूसरों से खुद की तुलना करने पर 

परिवार या दोस्तों से मधुर संबंध न रहने पर 

खुद को अकेला पाने पर 

 खुद में विश्वास की कमी होने पर 

दूसरों से अपेक्षाएँ ज्यादा रखने पर 


ऐसे ही कई कारण हैं जो हमें  मोटीवेट होने से रोकते हैं । जीवन है तो आशा और निराशा तो साथ होगी ही। लेकिन हमारी कोशिश यही होनी चाहिए परिस्थिति चाहे कितनी भी विपरीत क्यों ना हो सदा खुद को मोटीवेट करते रहैं । 

हमेशा खुद में मोटिवेशन बनाये रखने के लिए कुछ चीजो को अगर आप फॉलो करते हों  तो निश्चित तौर पर आप अपने अंदर प्रेरणा (मोटिवेशन) को बनाये रख सकते हैं। 

* प्राय कोई भी कार्य के लिए शरीर , मन और बुद्धि ( स्किल ) की आवश्यकता होती है। 

* तो हमें पहले अपने शरीर के स्वास्थ का ध्यान रखना होगा।  हमारा कुछ करने मन हो लेकिन शरीर साथ न देगा तो हम उस काम को कर नहीं पाएंगे।

* फिर किसी  भी काम के लिए मन का मोटीवेट होना जरूरी है।   उसके लिए आपकी उस कार्य में रूचि होनी चाहिए।  आपकी रूचि किस कार्य में है ये देखिये।  

* अब आती है बात बुद्धि की क्यों कि मन को मोटिवेशन दो चीजों से मिलता है पहला स्किल या ज्ञान - जो भी काम आप करना चाहते हैं उसके लिए आपके पास योग्यता होना आवश्यक है , दूसरा  सफलता की जबरदस्ती से आप उस मोटिवेशन को बरकरार नहीं रख पाएंगे।  अब जैसे पढाई है - देखने में ऐसा लगता है कि उसमें आपकी कोई रूचि नहीं है लेकिन होता यह है कि जो चीज हमें नहीं आती हम उसी  से जी चुराते हैं इसलिए जल्दी न करें और बजाय रटने केउस विषय को समझें।  


जो लोग बहुत सारे काम एक साथ करते हैं वो वो होते हैं जिन्होंने उन सब विषयों को कैसे करना है ये  समझा होता है और एक  बार समझने के बाद इंट्रेस्ट खुद ही बन जाता है और वो जीवन भर बना रहता है और एक कहावत है -“Don't limit yourself. - रही बात सफलता की उसके लिए मैं एक अलग पूरा ब्लॉग बनाउंगी जिसे पढ़कर आप खुद ही अपनी सफलता का रास्ता भी बना पाएंगे और उसके लिए पूर्ण उत्साहित भी रह पाएंगे।  वैसे संछेप में ऊपर दिए कारणों में ही सफलता के राज छुपे हैं जिसे हम और आप अगले ब्लॉग में खोलेंगे।  

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Personality Development

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  व्यक्तित्व में निखार 😇

इंसान के विचारों की दिशा उसके व्यक्तित्व के समान होती है। उसका पूरा बाहरी जीवन उसके दिमाग के आंतरिक विचार और गुणों पर निर्भर करता है।

    –Erich Sauer


हम अक्सर महंगे कपडे और श्रुंगार का उपयोग करते है, ताकि आकर्षित दिख सके। आपकी ये आदते कुछ समय का आकर्षण जरुर पैदा कर सकती है लेकिन अच्छे  व्यक्तित्व के लिए यह सही हल नहीं होगा। आप अपनी प्राकृतिक शक्ति से ही लोगों को आकर्षित कर सकते हैं।


 अपने व्यक्तित्व को कैसे आसानी से निखार सकते हैं और लोगो को अपनी और आकर्षित कर सकते हैं। सफलता प्राप्त करने के लिये इन उपायों पर आज से ही चलना शुरू कर दीजिये। कुछ ही दिनों में आपको चमत्कारिक सकारात्मक बदलाव जरुर दिखेगा, जो आपको सफलता और ख़ुशी के उच्च शिखर पर ले जायेंगा।

* सुनने की आदत-

   इससे न केवल आप दूसरे  प्रति गलत धारणा बनाने से बचते हैं बल्कि आपके अंदर धैर्य भी भड़ जाता है जो कि अच्छे व्यक्तित्व का निर्माण करता है।  


*  पढ़ने की आदत -

   अगर आपका ज्ञान अच्छा होगा तो आपको खुद में आत्मविश्वास महसूस होगा | पढ़ने से इंसान सीखता है और सीखने से व्यक्तित्व का विकास होता हैं और पढ़ने से व्यक्ति अपडेट भी रहता हैं उसे वर्तमान में क्या चल रहा है पता होता है इससे व्यक्ति के आत्मविश्वास  में वृद्धि होती है साथ में उसको कई लोगो के बीच नाम भी मिलता है |

* ध्यान पूर्ण जीवन - 

   शुरुआत केलिए हम कैसे किसी की बात का मतलब निकालते हैं , कैसे चलते हैं, बैठते हैं, बात करते वक्त कैसे शब्दों का उपयोग करते हैं, बात करते वक्त हमारे चेहरे की भाव भंगिमा कैसी है - इसका मतलब है कि हमारे जीवन के सभी साधारण क्रियाओं पर हमें ध्यान देना है। अगर आप ध्यान पूर्ण जीवन जीएंगे जैसे -अपने से पहले दूसरों का ध्यान रखना , स्वयं पर अनुकूल लगे ऐसे वस्त्र पहनना , और इन्हीं छोटी -छोटी बातों से आप पायेंगे कि - हमारा आकर्षित व्यक्तित्व बन गया है। हमारे बोलने चलने और बैठने उठने- सभी में नियंत्रन व् अविश्वस्नीय रूप से परिवर्तन आ गया है।  

* दूसरों को महत्व दें।  

* सकारात्मक पहलुओं पर ध्यान दें।  

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1 -the power of a positive attitude 

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3- attitude is everything

4- personality development soft skill 

अपने को जानो

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अपने को जानो 🌺

सबसे पहली बात यही है और वह यह कि मनुष्य के भीतर कुछ है। और जो उस भीतर के सत्य को जाने बिना जीवन में कुछ भी खोजता है वह व्यर्थ ही खोजता है। यदि मैं यह भी न जान पाऊं कि मैं क्या हूं और कौन हूं, तो मेरी सारी खोज का क्या अर्थ होगा? चाहे वह खोज धन की हो, चाहे पद की, चाहे यश की, चाहे परमात्मा की और चाहे मोक्ष की।

कुछ थोड़े से लोगों को जीवन में ही यह दिखाई पड़ने लगता है कि हाथ खाली हैं। जिनको यह दिखाई पड़ता है कि हाथ खाली हैं, वे संसार की दौड़ छोड़ देते हैं–धन की और यश की, पद की और प्रतिष्ठा की। लेकिन वे लोग भी एक नई दौड़ में पड़ जाते हैं–परमात्मा को पाने की, मोक्ष को पाने की। और मैं यह निवेदन करना चाहूंगी  कि जो भी आदमी दौड़ता है वह हमेशा खाली रह जाता है, चाहे वह परमात्मा के लिए दौड़े और चाहे धन के लिए दौड़े। इसलिए केवल सम्राट ही खाली हाथ नहीं मरते, और भिखारी ही नहीं, बहुत से संन्यासी भी खाली हाथ ही मरते हैं।

तो बाहर के संसार से छुटकारा होता है तो बाहर का परमात्मा पकड़ लेता है। लेकिन भीतर जाना फिर भी नहीं हो पाता। क्योंकि जितने बाहर के मकान हैं उतने ही बाहर के मंदिर हैं। चीज बदल जाती है, स्थिति वही की वही रही आती है। इसलिए जीवन भर कोई प्रार्थना करता है और फिर भी पाता है कि भीतर का खालीपन अपनी जगह है। वह कहीं नहीं गया। जीवन भर भजन करता है, फिर भी आखिर में पाता है कि वे शब्द खो गए हवाओं में, और भीतर जो खाली था वह अब भी खाली है।

सर्वभूतस्थमात्मानं सर्वभूतानि चात्मनि।

ईक्षते योगयुक्तात्मा सर्वत्र समदर्शनः॥ भगवद्गीता (६.२९)         

योगयुक्तात्मा पुरुष सर्वत्र समत्व का दर्शन करते हुये आत्मा को सब भूतों में स्थित और सब भूतों को आत्मा में कल्पित देखता है। 

   🙏 ऐसे ज्ञानी पुरुष को शरीर, मन और बुद्धि हाथ में पकड़ी हुई कलम की भाँति अपने उपकरण प्रतीत होते हैं। उनके ऊपर उसका पूरा नियन्त्रण रहता है। व्यवहार काल में उसका व्यक्तित्व समन्वित (integrated) होता है। आत्मज्ञान के बिना मनुष्य का व्यक्तित्व सिर के बिना धड़ के समान है। वह एक कबन्ध मात्र है। ऐसे अधूरे व्यक्तित्व में जीवन जीने वाला मनुष्य बहुत भाग-दौड़ करने पर भी भटकता ही रहता है। उसके हाथ कुछ नहीं लगता।


आत्मज्ञानी का व्यक्तित्व पूरा है। वह अपनी आत्मशक्ति से बुद्धि पर नियन्त्रण रखता है, बुद्धि से मन पर, मन से इन्द्रियों पर और इन्द्रियों से शरीर पर नियन्त्रण रखता है। ऊपर से नीचे तक ऐसा नियन्त्रित व्यक्तित्व सशक्त और कुशल होता है। अपने को ऐसा व्यवस्थित बनाना ही है। इसलिए भगवान कहते हैं –

इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्यः परं मनः।

मनसस्तु परा बुद्धियों बुद्धः परतस्तु सः॥ भगवद्गीता (३.२२

एवं बुद्धेः परं बुद्ध्वा संस्तभ्यात्मानमात्मना।

जाहं शत्रु महाबाहो कामरूप दुरासदम्॥ भगवद्गीता (३.४३१

अर्थात् इन्द्रियों को स्थूल शरीर से पर यानि श्रेष्ठ बलवान् और सूक्ष्म कहते हैं । इन इन्द्रियों से पर मन है, मन से भी पर बद्धि है और जो बुद्धि से भी अत्यन्त पर है वह आत्मा है। इस प्रकार बुद्धि से श्रेष्ठ आत्मा को जानकर और बुद्धि के द्वारा मन को वश में करके कामरूप दुर्जय शत्रु को जीता जा सकता है।

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1- Apne ko jano 

2- Think like a monk 




गुरुवार, 6 अगस्त 2020

अकेलापन और अकेला होना

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😔अकेलापन और अकेला होना 💭

अकेलेपन की तुलना अक्सर खाली, अवांछित और महत्वहीन महसूस करने से की जाती है। अकेले व्यक्ति को मजबूत पारस्परिक संबंध बनाने में कठिनाई होती है।


अकेला होना एक सकारात्मक, सुखद और भावनात्मक रूप से तरोताज़ा करने वाला अनुभव हो सकता है।


ऐसे बहुत से कारण हैं जिनकी वजह से आप खुद को अकेला महसूस कर सकते हैं। अगर आप किसी खास कारण को नहीं तलाश पा रहे हैं कि आप इतने अकेले क्यों हैं? तो, एक नज़र अपनी ज़िंदगी में बीते हुए वक्त और घटनाओं पर डालने की कोशिश कीजिए। यकीन मानिए आपको इसका समाधान वहीं पर मिल जाएगा। 

दोस्त या बहुत करीबी को खो देना

कमजोर शारीरिक या मानसिक सेहत की वजह से

आत्मसम्मान में कमी से अक्सर सामाजिक वियोग उत्पन्न होता है जिससे अकेलापन हो सकता हैं।

हाल में रिटायर होने, नौकरी छोड़ने या नौकरी चले जाने के बाद

भाषाई समस्या होने के कारण 

अलग संस्कृति के लोगों के बीच रहने के कारण 

भौगोलिक समस्याओं के कारण लोगों से संपर्क न कर पाने के कारण

आपके साथ साथ मैं भी यात्रा कर रही हूँ और जब ये सारे कारन लिख रही थी तो स्वतः ही इनके दूर होने  उपाय मन  में आ रहे थे ... 

आप भी देखेंगे तो शायद मुझसे बेहतर उपाय, आपके लिए क्या हो सकते ये देख पाएंगे  क्यूंकि समस्या भी आपकी है और मन भी तो बार - बार दोहराएं कि आपको क्यों अकेलापन लगता है और आपके मन को कोण सा उपाय सरल लगता है  .... क्योंकि यहां मैं व्यवहारिक रूप से आपको क्या फायदेमंद हो सकता है वह खोजने जा रहे हैं   .... अगर आप ध्यान से पूरा ब्लॉग पढ़ेंगे तो निश्चित ही अकेलेपन से दूर हो पायेंगे   .... 

अकेलापन आपको निराश रहने के लिए भले ही प्रेरित करता हो लेकिन अगर आप इसे नए नज़रिये से देखना शुरू कर दे तो ये आपको इतना तकलीफ़देह नहीं लगेगा।

यही वो समय है जो आप खुद के साथ बीता सकते हैं, स्वयं की अच्छाइयां और खामियाँ देख सकते हैं और खुद को नजदीक से जान सकते है।

लोगों से बातचीत करना शुरू करें। अगर समझ न आये तो शुरुआत ऐसे कीजिये 👉शुरुआत इस बात से करें, ''आप कैसे हैं?''

साइंस के मुताबिक, पेट्स आपके मानसिक स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद साबित हो सकते हैं। पेट्स आपके स्ट्रेस को कम करने और एंग्जाइटी के लक्षणों को दूर करने में मदद कर सकते हैं। 

अपनी कमियों व अच्छाइयों दोनों को ही ध्यान  रखते हुए जो भी थोड़ी-बहुत अच्छाइयाँ हैं, उन्हीं के आधार पर किसी भी क्षेत्र में धैर्य व तल्लीनता के साथ सोच-समझकर कुछ भी अर्थपूर्ण व उपयोगी कार्य करने की पहल करें। समय कैसे निकलता जाएगा, पता भी नहीं चलेगा और सबसे अहम तो यह है कि जो संतुष्टि व खुशी मिलेगी, उसका और कोई विकल्प नहीं होगा।



व्यक्ति अकेलेपन से तभी घबराता है जब वह स्वस्थ नहीं रहता। उसे हर वक्त यही महसूस होता है कि मुझे कुछ तकलीफ हो गई तो क्या होगा? मेरा किसी ने साथ नहीं दिया तो क्या करूँगा। इसलिए जीवन जीने के लिए सबसे महत्वपूर्ण व आवश्यक सेहतमंद रहना ही है। जब ऐसा होगा तभी उम्र को अनदेखा कर व्यक्ति जो चाहे वही कार्य कर सकता है।

सकारात्मक रवैया अपनाते हुए जिंदगी की महत्ता समझ इसका एक-एक क्षण भरपूर जिएँ 

अगर हम कुछ और गहरे में जायेंगे तो पाएंगे कि हम और ये संसार अलग अलग नहीं है।  सभी कुछ जुड़ा हुआ है- मैं हूँ इसीलिए ये संसार है -ये संसार - इसका इतिहास -सब कहानियां हैं - अब जब हमें इस वननेस का अहसास होगा तो वहां कोई दूसरा होगा ही नहीं जिससे हमारी अपेक्षा होगी। ये विचार कि हम अधूरे हैं - यही है जिसके लिए हम एक  के सामने कुछ और दूसरों के आगे कुछ और होते हैं।  हमारी यही फीलिंग हमें बोर करती है।  अगर ऐसा करेंगे तो वो क्या कहेगा- इन सारी बातें एकदम बेमानी हो जाती हैं।  इसी के बारे में कहा गया है - 

एकम सत विप्राः बहुधाः भवन्ति। 

 ईस्वर एक है और विप्रों ( ज्ञानीयों ) ने इसे विविध रूप में वर्णन किया है।  

और वह सत्य ऐसे है कि-  'अहम् ब्रह्मास्मि '

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books are suggested-

1- love, freedom, aloneness


2- on love and loneliness 


3- straight talk on loneliness



आध्यात्म क्या है

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आध्यात्म क्या है ?
अध्यात्म का सामान्य अर्थ है अन्तर्जगत। प्रश्न उपनिषद के तीसरे प्रश्न में आश्वलायन मुनि का प्रश्न है कि यह प्राण शक्ति किस प्रकार पंचभूतों से बने इस बाह्य भौतिक जगत को धारण करती है और किस प्रकार यही प्राण शक्ति मन और इन्द्रिय आदि आध्यात्मिक अर्थात आंतरिक जगत को धारण करती है। ....कथं बाह्यम् अभिधन्त, कथं आधात्मम् इति।     

                

 गीता के अध्याय 8 में अर्जुन  पूंछते है ”हे पुरूषोत्ताम! वह ब्रह्म क्या है? अध्यात्म क्या है? और कर्म के माने क्या है? (अध्याय 8 श्लोक1, लोकमान्य तिलक का अनुवाद, गीता रहस्य पृष्ठ 489) मूल श्लोक है ‘ किं तद् ब्रह्मं किम् अध्यात्मं किं कर्म पुरूषोत्ताम”। यहां ब्रह्म की जिज्ञासा है, ब्रह्म ईश्वरीय जिज्ञासा है। आगे अध्यात्म जानने की इच्छा है। अध्यात्म ईश्वर या ब्रह्म चर्चा से अलग है। इसीलिए अध्यात्मक का प्रश्न भी अलग है। कर्म भी ईश्वरीय ज्ञान से अलग एक विषय है। इसलिए कर्म विषयक प्रश्न भी अलग से पूछा गया है। अब श्रीकृष्ण का सीधा उत्तार देखिए ”अक्षरं ब्रह्म परमं, स्वभावों अध्यात्म उच्यते – परम अक्षर अर्थात कभी भी नष्ट न होने वाला तत्व ब्रह्म है और प्रत्येक वस्तु का अपना मूलभाव (स्वभाव) अध्यात्म है। 
मानव शरीर के संदर्भ में देखें तो पंचभौतिक शरीर के भीतर स्थित मन बुद्धि व आत्मा का भीतरी जगत ही अध्यात्म जगत है तथा इन भीतरी घटकों का चिन्तन अन्वेषण आध्यात्मिक अन्वेषण है। इस प्रकार अध्यात्म बाह्य से अंतर की तरफ देखना, बाहरी दुनिया से चलकर मन की भीतरी दुनिया की तरफ की यात्रा है।
अध्यात्म शब्द का प्रयोग मुख्यत: दर्शन शास्त्र, धर्म विज्ञान, तंत्र शास्त्र और ब्रह्मविद्या जैसे ज्ञान क्षेत्रों में अधिक किया जाता है, जो भौतिक विज्ञान की तुलना में अधिक गूढ़, अस्पष्ट व रहस्यमय माने जाते हैं। इनमें अध्यात्म से आशय सामान्यत: इस दिखाने देने वाले संसार के पीछे विद्यमान अदृश्य जगत से, अदृश्य कारण से और अदृश्य सत्ता से होता है। इसके साथ ही इस दृश्य सत्ता से जुड़े कार्य व्यापार के विविध संदर्भ भी अध्यात्म के अंतर्गत आ जाते हैं। इस प्रकार अध्यात्म का विस्तार समस्त जड़ चेतन जगत की उत्पत्ति स्थिति पालन और विघटन के पीछे एक मात्र मूल नियंत्रक सत्ता तक हो जाता है जिसे ब्रह्म भी कहा जाता है। पर द्वैतवादी, अद्वैतवादी, शैव, शाक्त, वैष्णव आदि मत अनुसार इस सत्ता के कई और निर्गुण सगुण नाम भी हो सकते हैं।
जीवात्मा का मूल स्वभाव ही अध्यात्म है इसका आशय यही है कि "ईश्वर अंश जीव अविनाशी' (तुलसी) इस जीव का मूल स्वभाव, परमात्मा का अंश होने से परम चैतन्य स्वरूप ही है या कहें कि स्वयं अध्यवत ब्रह्म के समान ही है। जीव की अध्यात्म भाव में स्थिति अर्थात मैं ही ब्रह्म हूं। जब जीव ब्रह्म से हटकर संसार से जुड़ता है तो उसकी स्थिति अध्यात्म भाव से हटकर अधिभौतिक भाव में हो जाती है। तब वह स्वयं को संसार में लिप्त पाता है। यह अध्यात्म भाव जीवात्मा को इस भाव बोध को उपलब्ध हो जाने पर होता है कि वह शरीर नहीं आत्मा है जो परमात्मा का अंशरूप है जो सर्वव्यापी है। इस प्रकार अध्यात्मभाव में स्थित होने पर व्यक्तिगत चेतना सामूहिक सार्वजनिक चेतना बन जाती है।
यहां हम एक महत्वपूर्ण निष्कर्ष पर पहुंच जाते हैं कि अध्यात्म भाव में स्थित व्यक्ति की चेतना व्यक्तिगत चेतना, विस्तारित होकर समस्त जड़ चेतना को अपने में समेट लेती है। अर्थात बूंद में सागर आ जाता है। विवेकानन्द के गुरु परमहंस रामकृष्ण ऐसी ही व्यापक चेतना में रहा करते थे, यही कारण है कि गरीब मल्लाह के शरीर पर चाबुक के निशान उनकी पीठ पर उभर आएं तथा एक बार उन्हें डूबने जैसी अनुभूति हुई तो उसी समय एक जहाज कहीं दूर डूब रहा था जिसकी खबर बाद में मिली। यह मोक्ष की स्थिति है जो पलायन नहीं क्योंकि दुनिया से भागकर कहीं जाया ही नहीं जा सकता।
प्रश्न है कि आध्यात्मिक शक्ति अर्थात ब्रह्म को समझ में आने योग्य कैसे बनाया जा सकता है तथा इस अव्यक्त अंतरमुखी अध्यात्म भाव को सरल सहज और जनसाधारण के व्यवहार के लायक एवं बहिर्मुखी किस प्रकार बनाया जा सकता है। यों तो यह दुष्कर कार्य है इसीलिए सूरदास कहते हैं कि इस अव्यक्त की गति कहने में नहीं आती। यह तो गूंगे का गुड़ है। दूसरी बात यह कि शब्दों या प्रतीकों बिम्बों में बाँधने पर इस अध्यात्म तत्व का या कहे कि आत्मतत्व का भावबद्ध हो जाये ये सीमित हो जाता है और व्याख्या के कारण विकृति को भी प्राप्त होता जाता है। फिर भी लोक शिक्षण के लिए इस अध्यात्म तत्व को जिन प्रतीकों और बिम्बों में व्यक्त किया गया है उसके कारण ही ईश्वर की सगुण उपासना शक्ति शिव, राम, कृष्ण, गणेश आदि शब्दों में की जाती है तथा साधना सोपान बढ़ने पर ये इष्टदेव अव्यक्त ब्रह्मरूप हो जाते हैं। इन सगुण निर्गुण की उपासना में व्यक्तिगत स्तर पर अनुभूत प्रतीकों बिम्बों की जैसे कि यह आत्म तत्व अंगुष्ठ मात्र प्रमाण का है अथवा यह सहस्रशीर्ष सहस्त्रपाद वाला है इत्यादि पर चर्चा को छोड़ दिया गया है। कबीर की साखियों में इस गूढ़ अध्यात्म तत्व का तथा अध्यात्म भाव का बिम्ब विधान बहुत ही सजग साकार रूप में देखा जा सकता है तथा सूर के कुछ कूट पद भी इसी प्रकार के हैं।
अध्यात्म का अर्थ ‘स्व’ ही है.....

वस्तुतः आध्यात्म उस आकाश की तरह है जो सर्व व्यापक है पर बादलों के आने पर उसका आभास होता है।  उस प्रतिबिंब की तरह है जो इस प्राण के रहने से किसी दर्पण में दिखाई देता है ....
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अब जाग

    अब जाग   देह है जो 'दे' सबको, न कर मोह उसका, छोड़ना है एक दिन जिसको, झंझट हैं सब तर्क, उलझाने की विधियाँ हैं, ये कहा उसने, ये किय...