रविवार, 30 अगस्त 2020

यथा दृष्टि तथा सृष्टि

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                         यथा दृष्टि तथा सृष्टि 

हम अक्सर सुनते हैं कि यथा दृष्टि तथा सृष्टि - अर्थात हम जैसे संसार को देखते है यह संसार हमारे लिए वैसा ही है।  

यहाँ मुझे एक चोपाई रामायण की याद आ गई -

जाकी रही भावना जैसी ,प्रभु मूरत देखि तिन तैसी।  

 जब राम- जनक की सभा में पहुंचे तो कोई उन्हें अपने बेटे के रूप में देख रहा है , कोई योद्धा के रूप में , कोई शत्रु के रूप में , कोई सगे संबंधी के रूप में।  

मतलब एक ही है - वही एक मात्र ईश्वर, एक मात्र चेतना , एक मात्र ऊर्जा सबके अंदर है और सब आपस में अपने अंदर की भावनाओं के  हिसाब से दूसरों को देख रहे होते हैं।  


यह बात ज्यादातर हम महसूस करेंगे कि हम जैसा दूसरों के बारे में सोच रहे होते हैं दूसरा भी हमारे बारे में वैसा ही सोच रहा होता है। 




कई बार ऐसा होता है कि कोई व्यक्ति हमें अच्छा नहीं लगता।  नहीं  लगने का कारण उसकी कुछ आदतें हैं। न चाहते हुए भी हमको उसे झेलना पड़ता है। 

 ऐसे में ये गुस्सा दोनों तरफ से बन रहा होता है।  उसकी हमारे बारे में सोच  है - कि ये ऐसा ही है - और हमारी भी राय बिलकुल वैसी ही होती है।  



सभी के अंदर एक ही ईश्वर है हम सामने कैसे भी हों लेकिन अंदर से हम अलग- अलग लोगों के लिए , अलग -अलग भाव रखते हैं।,और उसके अंदर बैठा हुआ ईश्वर भी हमें उसी भावना से देख रहा होता है।  



दूसरा कोई है ही नहीं।  


जैसे एक व्यक्ति किसी के लिए बहुत बुरा है और दूसरे के लिए अच्छा।  यानि कोई भी पूरी तरह से न अच्छा है न बुरा , हो भी नहीं सकता।  


जैसा कि  हमारे शास्त्रों में और गीता में वर्णित है -  

हम सब सत , रज , तम तीन गुणों से ही मिलकर बने हैं।  प्रत्येक व्यक्ति चाहे वह किसी भी स्थिति का हो , उसमें ये तीनों गुण होते ही हैं।  


अभी इसका वैज्ञानिक पक्ष भी जान लेते हैं - जैसा कि हम जानते हैं की हम सब परमाणु से बने हैं और वह तीन प्रकार के अणुओं से बना है - 

न्यूट्रॉन , प्रोटोन और इलेक्ट्रान।  यह क्रमशः सत , रज और तम के गुणों का ही प्रारूप हैं।  इसीलिए हमारे शास्त्रों को और ऋषियों की बातों को आज के वैज्ञानिक अपनी खोज का आधार बनाते हैं क्यों कि वो सब जो भी बात कहते थे उनका पूर्ण विश्लेषण और वैज्ञानिक कारणों को ध्यान  में रख कर ही कहते थे।   

अभी हम उस पायदान तक नहीं पहुंचे इसका मतलब यह नहीं कि वह बात गलत है।  


 यहां मैंने आपको आध्यात्मिक और वैज्ञानिक कारण दिए हैं और आप अपने  माइंड सेट के हिसाब से इसको समझ और मान सकते हैं।  

अब हम स्वभाविक रूप से इसको कैसे अप्लाई करें यह भी देखते हैं -


अब ऐसे में अगर हम एक लिस्ट बनायें कि क्या वाकई में सामने वाला गलत है या ये हमारे मन का बहम है, अक्सर हमें ये स्वीकार करने में बड़ी दिक्कत आती है कि ये हमारा बहम हो सकता है।  

अब इसको कैसे जांचे - 

१ क्या वह ये हमारे साथ जान बूझकर कर रहा है। 

२ अगर हाँ तो उसका कारण क्या है।  

३ कई बार स्कूल या कार्य क्षेत्र में लोग ऐसा करते हैं जिससे इरिटेशन होती है।  

४ यहां अगर आपके बात करने   से  एक बार में समस्या खतम होती है तो पूरे मन से संवाद के रूप में  बात कर लें।  

और अगर पॉसिबल नहीं है तो मानसिक रूप से दूरी बनाने का प्रयास करें। 

५ आपको अवॉयड नहीं  करना है वरना यह उन्हें और चिढ़ाएगा और उससे आपकी शांति और अधिक ख़त्म होगी इसलिए मेरे हिसाब से आप ऊपर दिए गए - जिस भी बिंदु ( वैज्ञानिक या आध्यत्मिक )को स्वीकार कर पाए उससे अपने को समझा कर शांति दिला सकते हैं।  

६ अपनी स्किल को बढ़ाने पर अपनी शक्ति का उपयोग करें।  

७ जैसे बचपन में हम किसी से लड़ते थे लेकिन दूसरे ही क्षण खेलने लगते थे।  ऐसे ही हर क्षण अलग है यह मान कर आगे बढ़ें। 

८ आपका आगे भड़ना और कैसे भी विरोध , बुराई या उपेक्षा न पाने पर सामने वाले का स्वयं ही ह्रदय परिवर्तन होने लगेगा। 

९ यह ध्यान रखें कि वह सबके साथ खराब नहीं है , इसका मतलब वह बुरा नहीं है। 

१० सबसे अधिक एक चोपाई मुझे प्रेरित करती है आपको भी कहना चाहूंगी - 

   

  सिय राम मय सब जग जानी,

करहु प्रणाम जोरी जुग पानी ।।


आशय - 

पूरे संसार में श्री राम का निवास है, सबमें भगवान हैं और हमें सबको हाथ जोड़कर प्रणाम कर लेना चाहिए।


👉क्या ये ब्लॉग किसी भी प्रकार से आपके लिए सहायक है या आपके सुझाव इस विषय में क्या हैं  … और आप आगे किन विषयों पर ब्लॉग पढ़ना चाहते हैं  … कृपया अपने महत्वपूर्ण सुझाव दीजिये 🙏


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