रविवार, 9 अगस्त 2020

ध्यान का मूल मन्त्र

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ध्यान का मूल मन्त्र 🙏

ध्यान का मूल अर्थ है जागरूकता, अवेयरनेस, होश,   दृष्टा भाव और साक्ष‍ी भाव।

 ‘ ध्यान वह स्थिति है जो सहज घटता है।  

क्रिया के रूप में  -

तत्र प्रत्ययैकतानता ध्यानम।। 3-2 ।।-योगसूत्र  

अर्थात- जहां चित्त को लगाया जाए उसी में वृत्ति का एकाकार होना  ध्यान है। 


धारणा का अर्थ चित्त को एक जगह लाना या ठहराना है, लेकिन ध्यान का अर्थ है जहां भी चित्त ठहरा हुआ है उसमें वृत्ति का एकाकार होना ध्यान है। उसमें जाग्रत रहना ध्यान है।

 ध्यान का अर्थ एकाग्रता नहीं होता। एकाग्रता टॉर्च की स्पॉट लाइट की तरह होती है जो किसी एक जगह पर ही प्रकाश देती  है, लेकिन ध्यान उस बल्ब की तरह है जिसका प्रकाश चारों दिशाओं में फैलाता है।  योगियों का ध्यान सूरज के प्रकाश की तरह होता है जिससे ब्रह्मांड की हर चीज पकड़ में आ जाती है।

ध्यान मात्र होना है, बिना कुछ किए - कोई कार्य नहीं, कोई विचार नहीं, कोई भाव नहीं।  बस होन, और यह एक कोरा आनंद है। जब आप  कुछ नहीं करते हैं तो यह आनंद कहां से आता है? यह  अस्तित्व आनंद नाम की वस्तु से बना है। इसे किसी कारण की आवश्यकता नहीं है। यदि आप  अप्रसन्न हैं तो आपके  पास अप्रसन्नता का कारण है- अगर आप  प्रसन्न हैं तो आप  बस प्रसन्न हैं  - इसके पीछे कोई कारण नहीं है। हमारा मन कारण खोजने की कोशिश करता है क्योंकि यह अकारण पर विश्वास नहीं कर सकता, क्योंकि यह अकारण को नियंत्रित नहीं कर सकता - जो अकारण है उससे दिमाग  निष्क्रिय  हो जाता है।और मन को हर समय कुछ चाहिए जिसे वह जानता हो पर ईश्वर या ध्यान तो अज्ञात हैं  लेकिनज ब भी हम आनंदित होते हैं, तो  किसी भी कारण से आनंदित नहीं होते, जब भी हम  अप्रसन्न होते हैं ,  तो हमारे पास अप्रसन्नता का कोई कारण होता है - क्योंकि आनंद ही वह चीज है जिससे हम  बने हैं । 


 बहुत से लोग क्रियाओं को ध्यान कहते  हैं- जैसे सहज योग ध्यान, भावातीत ध्यान और सुदर्शन क्रिया । दूसरी ओर विधि को भी ध्यान समझने की भूल की जा रही है।


बहुत से संत, गुरु या महात्मा ध्यान की तरह-तरह की  विधियां बताते हैं, लेकिन वे यह नहीं बताते हैं कि क्रिया और ध्यान में फर्क है। क्रिया तो साधन है साध्य नहीं। क्रिया तो औजार है।  विधि और ध्यान में फर्क है।

अगर वे  प्रामाणिक बने रहते और लोगों से कहते कि इससे एक बेहतर आरामदायक जीवन, मानसिक स्वास्थ्य, शारीरिक स्वास्थ्य,  और शांतिपूर्ण जीवन मिलेगा, तो यह सही होता। 

 किसी मूर्ति का स्मरण करना भी ध्यान नहीं है। अक्सर यह कहा जाता है कि पांच मिनट के लिए ईश्वर का ध्यान करो- यह भी ध्यान नहीं, स्मरण है।आंख बंद करके बैठ जाना भी ध्यान नहीं है।  

ध्यान  कई चरणों के बाद हो पाता है।  इन कई चरणों में पहले चक्रों को ठीक किया जाता है।   ध्यान की सिद्धि के बाद व्यक्ति अनंत सत्ता का अनुभव कर पाता है।  इसे समाधि कहा जाता है।  

पतंजलि ने अष्टांग योग - यम, नियम आसान , प्राणायाम , प्रत्याहार, धारणा , ध्यान , समाधी के बारे में बताया है।    

इसके अलावा जेन योगा में भी इसकी विस्तृत चर्चा है।   यहां कुंडलनी कैसे विकसित होती है , किस प्रकार आप ध्यान की स्थिति तक पहुँच सकते हैं , प्राण -अपान - व्यान आदि सारी योग व् ध्यान से जुडी विधियों को बहुत सूक्ष्म रूप से समझाया गया है।  


मेडिटेशन या ध्यान से आपका मानसिक व् शारीरिक स्वास्थ अच्छा होता है , क्रोध व् चिंता कम होती है , जीवन में ऊर्जा व् सभी के प्रति जागरूकता भड जाती है।  

ऐसे आध्यात्मिक ध्यान, केंद्रित ध्यान, विपस्ना , मन्त्र ध्यान आदि कई प्रकार से ध्यान किया जाता है , अगर आप किसी विशेष ध्यान के बारे में जानना चाहते हैं तो कृपया मुझे कमेंट करके अवश्य बतायेँ।   

👉क्या ये ब्लॉग किसी भी प्रकार से आपके लिए सहायक है या आपके सुझाव इस विषय में क्या हैं  ... और आप आगे किन विषयों पर ब्लॉग पढ़ना चाहते हैं  ... कृपया अपने महत्वपूर्ण सुझाव दीजिये 🙏

books are suggested-

1- Dhyan Ke Kamal (Hindi)


2-Yoga Sutras of Patanjali


3- Zen-Yoga: A Creative Psychotheraphy to Self-Integration

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