सोमवार, 7 सितंबर 2020

पीवत राम रस लगी खुमारी

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                            पीवत राम रस लगी खुमारी


 हम चेतन सत्ता होने से ज्ञान एवं कर्म की सामथ्र्य रखते हैं और इससे ईश्वर को जानकर अपने सभी दुःख व क्लेश दूर कर जन्म व मरण के बन्धन व दुःखों से मुक्त होकर मोक्ष की प्राप्ति कर सकते हैं। ये ऐसे  है जैसे की पूर्ण चाँद बादलों में छुप जाये ।  ईश्वर ने हमे ज्ञान का पूर्ण प्रकाश दिया है पर हम ही हैं जो थोड़े समय भी स्थिर नहीं होते , इसी के लिए सारी योग साधनायें हैं।   इसका उपाय वेद और वैदिक साहित्य सहित , वैदिक विद्वानों की संगति तथा योगाभ्यास आदि कार्य हैं। सन्ध्या व अग्निहोत्र–देव–यज्ञ को करने से भी मनुष्य ईश्वर की निकटता व सान्निध्य को प्राप्त करता है। यह कार्य मनुष्य को ईश्वर से जोड़ते व उसके अनुकूल कर्मों का कर्ता व आचारवान बनाते हैं। आजकल लोग स्कूली ज्ञान प्राप्त कर डाक्टर, इंजीनियर, सरकारी कर्मचारी, बिजनेस मैन तथा राजनीतिककर्मी बन जाते हैं यहां जीवन को सांसारिक रूप से चलाने के लिए ये सभी आवशयक हैं लेकिन जीवन जिस कार्य के लिए मिला है व् उसके नैतिक मूल्य व् खुद जीवन का रस ( व्यसनों से रहित ) कैसे मिल  सकता है ये सब हम भूलते जा रहे हैं।  ये सब वस्तुतः स्किल हैं जो अगर हम स्वयं को जान गए तो बिना किसी संशय के आसानी से सीख सकते हैं लेकिन योगा के नाम पर पी. टी. हमें सिखाई जाती है, वैदिक आचरण के नाम पर केवल कर्मकांड, और यहां तोता बनने की शिफारिश भी नहीं हो रही ।

वास्तविकता में वह ज्ञान भी नहीं बल्कि उसका भी श्रोत है--  कुछ हद तक यह बोध है जो बुद्ध को प्राप्त हुआ यद्यपि उसे सही रूप में वर्णित भी नहीं किया जा सकता।   जो संत कबीर को अनपढ़ होते हुए भी ग्यानी संत कहलाता है , नानक को कहने पर मजबूर करता है - '' एक ओंकार सत नाम '' क्या है वो नाम ?  क्या है वो स्थिति जहां आपका मन निर्द्वन्द हो जाता है।   





जैसे कि किसी बच्चे को बहुत छोटे पन में जो झुनझुने पसन्द आते हैं वह उन्हें जिंदगी भर नहीं लिए रहता, कुछ और अच्छा मिलने पर वह अपने आप छूट जाता है बल्कि छोड़ने का प्रयास भी नहीं करना पड़ता ऐसे ही जब हम अधिक स्वाद वाली  वस्तु या ज्ञान प्राप्त करते हैं तो सांसारिक व्यसन को छोड़ना नहीं पड़ता वो खुद छूट जाते हैं इसी को संत कबीर ने कहा है - ''पीवत राम रस लगी खुमारी''     जैसे आपने कोई मिश्री की डली मुँह में रख ली हो और उसका निरंतर स्वाद ले रहे हों क्यों की स्वंय का कहें या ईश्वर का भान होना सारे शंषय हर लेता है और व्यक्ति मुक्त होकर ( आंतरिक रूप से ) जीवन का आनन्द लेता है।  

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books are suggested-

1- पीवत रामरस लगी खुमारी

         

2-Motivating Thoughts of Swami Vivekananda

 

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